|| श्रमजीवी ||
श्रमजीवी हूँ, कोई भीड़ नहीं
तन से सिंचूँ, नित धरणी को !
बोझ उठा, पग धरूँ अनंत को
पथ कांटों की शैय्या है !!
अम्बर के आक्षेप हूँ सहता,
सहूँ वैराग्य, गणनायक का !
हीन दृष्टि हैं निहार रहीं,
हूँ बूत बना मैं निःशब्द खड़ा !!
शेष नहीं है, रक्त शरीर में
ना रसा बची मुखमंडल में !
है लहूलुहान, अवछंग मेरा
अब हिम्मत भी है टूट रही !!
जीवन है सरल, जनमानस का
जब तक सांसें आबाद मेरी !
संकल्प मेरा है, पिघल रहा
श्रमजीवी हूँ, कोई भीड़ नहीं !!
✍️ " सक्षम "
|| Parishram Par Hindi Kavita ||
|| यथार्थ ||
ज़रा देखो इन गलियों को,
ये इस तरह सुनसान क्यों हैं !
ज़रा देखो इन घरों को,
ये इस तरह वीरान क्यों हैं !
ज़रा देखो इन हवाओं को,
ये इस तरह बेज़ान क्यों हैं !
समझ नहीं आता,
लोग इतने गुमनाम क्यों हैं !
क्यों इन घटाओं में बादल नहीं है !
शमशानों की तरह बसेरों में उठती आर्तनाद क्यों है !!
समझ नहीं आता !
लोगों में समझ कर भी ना समझने की ज़िद क्यों है !!
✍️ " सक्षम "
|| कटुत्व से जो मुक्त हों ||
कटुत्व से जो मुक्त हों
आसक्ति से हों परे ।
विहंग बन स्वभाव से,
गगन चले उड़ान को ।।
स्वार्थ की क्षुधा नहीं,
ना ही तृष्णा ख्याति की ।
परमार्थ से बंधे चले,
सृष्टि के कल्याण को ।।
आटोप से निःशेष हो,
निश्छल बने अवछंग से ।
विहंग बन स्वभाव से,
गगन चले उड़ान को ।।
✍️ " सक्षम "
|| उड़ान ||
छा जाऊं पूरे अम्बर पर ।
मेरी वृष्टि से हो तृप्त धरा
मंद- मंद मुस्काए ।।
मेरी आँचल तले उड़ान भरे खग,
पल सुकून के प्राप्त करे !
जीवों के नृत्य को देख ,
खुशी से मन मेरा भी विभोर रहे !!
✍️ " सक्षम "
|| चुनाव ||
देखो, चुनाव आया है ।
कहने को बदलने,
हमारा भाग्य आया है ।।
निराशा से भरी जनता में,
आशा का संचार लाया है ।
झूठे ही सही,
पर वादों की भरमार लाया है ।।
छले जाएँगे फिर एक बार
निश्छल मानुष, अपनी अंधभक्ति में ।
कुचल दिए जायेंगे कीड़े-मकौडों की मानिंद,
जो सच के साथ खड़े होंगे ।
हो चुके हैं आदी, हम उनके वादों की गुलामी के ।
उत्कृष्टता की भूख मर चुकी है शायद ,
या उस पर भी डर हावी है ।।
✍️ " सक्षम "
|| युवा जोश ||
दीन प्रजा, संतप्त हृदय से
रक्त पिपासु बन बैठा जग,
जब आवाज लगाती है !
भाव विह्वल हो, जननायक
तब देव स्वरूप उभरते हैं !!
हर लेने को कष्ट सभी,
जब युवा जोश दिखाती है !
संकट का अटल पर्वत भी ,
विवश हो अपना शीश झुकाता है !!
हो दिशाहीन, प्रपंच में फँसकर
कब तक आपस में लड़ोगे !
बन कठपुतली, धूर्तों की
कब तक समय गँवाओगे !!
हे! शक्तिपुंज, तुम नेत्र खोल
अपना सामर्थ्य दिखाओ !
नायक बन, हित साधो राष्ट्र की
बहुरूपियों को सबक सिखाओ !!
कुछ छुपा नहीं, तुमसे है भेद
बस जिज्ञासा दिखलाओ !
इन दुष्ट-पापियों के चंगुल से,
अपना देश बचाओ !!
✍️ " सक्षम "
|| जग ||
भौतिक सुख पाने को !
है संकीर्णता नस-नस में घुल चुकी,
भाई, भाई का प्राण हैं लेते !!
कुंद पर चुका है स्वविवेक,
परहित का है ध्यान नहीं !
मानो प्रकृति कह रही हमसे,
सर्वनाश है निकट खड़ा !!
है कर्म प्रबल, कोई धर्म नहीं
पाओगे वही जो बोया है !
लड़कर सुख हो छीज सकते,
मुक्ति से दूर हो जाओगे !!
क्या सोच आये थे, धरा को
नर्क बना जाओगे !
हे! मूढ़मति अब भी संभलो,
है दुःखद अंत आने वाला !!
नस-नस में अंगार जलेगा,
सब दर्प भष्म हो जाएगा !
राखों के ढ़ेर पर रक्तवर्ण,
यमदूत खड़ा गुर्राएगा !
✍️ " सक्षम "